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رديف |
عنوان |
غزل |
| 1 |
عيد نوروز |
باد نوروز
وزيـــده است به كوه و صحرا |
| 2 |
حسن ختام |
الا يا ايها الساقى! ز مـــى پُر ســــاز جامم را |
| 3 |
جان جهان |
به تو دل بستم و
غير تو كسى نيست مرا |
| 4 |
شرح جلوه |
ديــــــــــدهاى
نيست نبيند رخ زيبــــــــــــاى تو را |
| 5 |
درياي جمال |
ســـــــر زلفت به
كنارى زن و رخسارگشا |
| 6 |
مسلك نيستي |
جزعشق تو، هيچ
نيست اندر دل ما |
| 7 |
لب دوست |
گـــــرچه از هر
دو جهان هيچ نشد حاصل ما |
| 8 |
خانقاهِ دل |
الا يــــا ايها
الســـــــــاقى! برون بر حسرت دلها |
| 9 |
آفتاب نيمه
شب |
اى خوب رخ كه
پـــــرده نشينى و بىحجاب |
| 10 |
دريا و سراب |
مــــا را
رهـــــا كنيد در اين رنج بىحساب |
| 11 |
درگاه جمال |
هــــر كجا پا بنهى حسن وى آنجا پيداست |
| 12 |
سخن دل |
عـــاشق دوست ز رنـــــگش پيداست |
| 13 |
مكتب عشق |
آنكه
دامن مى زند بر آتش جانـــم، حبيب است |
| 14 |
رخ خورشيد |
عيب
از ما است، اگر دوست ز ما مستور است |
| 15 |
عاشق سوخته |
پــــــــرده بردار ز رخ، چهرهگشا ناز بس است |
| 16 |
مذهب رندان |
آنكه
دل بگسلد از هر دو جهان، درويش است |
| 17 |
ديار يار |
عشـــــــــــق نگـــار، سرِّ سويداى جان ماست |
| 18 |
سبوي عاشقان |
بــــــرخيز مطربا، كه طرب آرزوى ماست |
| 19 |
قبله محراب |
خــــــــم ابـــروى كجت قبله محــراب من است |
| 20 |
درياي عشق |
افسانه جهــــان، دل ديوانه من است |
| 21 |
فتواي من |
سر
كوى تو، به جان تو قسم! جاى من است |
| 22 |
خانه عشق |
خــانه عشق است و منزلگاه عشّاق حزين است |
| 23 |
هواي وصال |
در
پيچ و تــــــــاب گيسوى دلبر، ترانه است |
| 24 |
پرتو عشق |
عشق
اگــــــر بال گشايد به جهان، حاكم اوست |
| 25 |
مبتلاى دوست |
بــــــــــاد صبا، گذر كنى ار در سراى دوست |
| 26 |
سبوى دوست |
عمرى
گذشت و راه نبردم به كـوى دوست |
| 27 |
سرّ جان |
با كه
گويم راز دل را، كس مرا همراز نيست |
| 28 |
محفل دلسوختگان |
عاشقم، عاشق و جز وصل تو درمانش نيست |
| 29 |
مستى عاشق |
دل كـه آشفته روى تو نبـــــاشد، دل نيست |
| 30 |
حسرت روى |
امشب
از حسرت رويت، دگر آرامم نيست |
| 31 |
هست و نيست |
عالم
اندر ذكر تو در شور و غوغا، هست و نيست |
| 32 |
راه و رسم عشق |
آنكـــــــــه ســر در كوى او نگذاشته، آزاده نيست |
| 33 |
قصه مستى |
آنكه
دل خــــــــــواهد، درون كعبه و بتخانه نيست |
| 34 |
ميگُساران
|
عاشقـــــــان روى او را خانــه و كاشانه نيست |
| 35 |
طبيب عشق |
غـــــــــــم دل با كه بگويم كه مرا يارى نيست |
| 36 |
خرقه تزوير |
مـــــــــــاييم و يكى خرقه تزوير و دگر هيچ |
| 37 |
مژده ديدار |
باد
بهار مــــــــــــــــــــژده ديـــــدار يار داد |
| 38 |
پرواز جان |
گــــــــــر به سوى كوچه دلدار راهى باز گردد |
| 39 |
غم يار |
بـــــــــــــــاده از پيمانه دلدار، هشيارى ندارد |
| 40 |
اخگر غم |
آنكــــــــــه ما را جفت با غم كرد، بنشانيــــد فرد |
| 41 |
سفر عشق |
بــــــــــــا دلِ تنگ به ســـوى تو سفر بايد كرد |
| 42 |
قبله عشق |
بهــــــــــــــــار شد، در ميخـــانه باز بايد كرد |
| 43 |
صبح اميد |
عشقت
انـــــــــدر دلِ ويرانه ما منزل كرد |
| 44 |
عشق دلدار |
چشم
بيمــــــار تو اى مى زده، بيمارم كرد |
| 45 |
دلجويى پير |
دست
آن شيخ ببوسيـــــد كه تكفيرم كرد |
| 46 |
عشقِ چاره ساز |
حــــــــــــــديث عشق تو، باد بهار باز آورد |
| 47 |
اسرار جان |
اى
دوست، پيـــــر ميكده از راه مى رسد |
| 48 |
فارغ از عالم |
فقـر
فخر است اگر فارغ از عالم باشد |
| 49 |
راز نهان |
داستــــــــــــــــــان غم من راز نهانى باشد |
| 50 |
مژده وصل |
گــــــــره از زلف خم اندر خم دلبر، وا شد |
| 51 |
معجز عشق |
نــــــــــــاله زد دوست كه راز دل او پيدا شد |
| 52 |
سرود عشق |
بهــــــــــــار آمــــــــد و گلـــزار، نور باران شد |
| 53 |
بهار |
بهار
آمد كه غم از جان برد، غم در دل افزون شد |
| 54 |
خضر راه |
چــه
شد كه امشب از اينجا گذارگاه تو شد |
| 55 |
كتاب عمر |
پيـــــــــــرى رسيد و عهـــــــــد جـــوانى تباه شد |
| 56 |
دعوى اخلاص |
گــــر تــــو آدمزاده هستى "عَلّم اَلاَسما" چه شد؟ |
| 57 |
جلوه جمال |
كـــوتاه سخن كه يــــــار آمد |
| 58 |
ميلاد گل |
ميلاد
گل و بهـــار جـــــان آمد |
| 59 |
كاروان عمر |
عمر
را پايـان رسيد و يــــــــارم از در درنيـــامد |
| 60 |
لذت عشق |
لذت
عشق تو را جز عاشق محـــزون، نداند |
| 61 |
جام جم |
بــــــا گلرخان بگوييد ما را به خود پذيرند |
| 62 |
جلوه جام |
اى
كــــــاش، دوست درد دلــم را دوا كـــند |
| 63 |
رازِ مستى |
گشــاى در كه يار ز خُم نوش جان كند |
| 64 |
پرده نشين |
اين
قافلــــه از صبح ازل، ســــوى تــــو رانند |
| 65 |
سايه لطف |
بــوى
گل آيد از چمن، گويى كه يار آنجا بود |
| 66 |
درياى فنا |
كـــــــاش، روزى به سـر كوى توام منزل بود |
| 67 |
طريق عشق |
فـــــــــــــراق آمد و از ديدگان، فروغ ربود |
| 68 |
مستى نيستى |
در
محضــــــــر شيخ، يــــــادى از يار نبود |
| 69 |
سلطان عشق |
گـر
سوز عشق در دل مـــــا رخنه گر نبود |
| 70 |
كعبه عشق |
از
دلبــــرم به بتكـــــــده، نام و نشان نبود |
| 71 |
گواه دل |
ســـاغر از دست ظريف تو، گناهى نبود |
| 72 |
زنجير دل |
جـــز
گل روى تـــــــو، امّيــد به جايى نبود |
| 73 |
روز وصل |
غم
مخور، ايّام هجران رو بهپايان مىرود |
| 74 |
آتش عشق |
كيست
كــــــــــــآشفته آن زلف چليپا نشود |
| 75 |
راز بگشا |
مرغ
دل پر مىزند تا زين قفس بيرون شود |
| 76 |
عشقِ مسيحا دَم |
بلبل
از جلـــــــــوه گل، نغمه داوود نـــمود |
| 77 |
پرتو حُسن |
خواست
شيطان بد كند با من؛ ولى احسان نمود |
| 78 |
عاشق دلباخته |
سر خم
باد سلامت كه به من راه نمود |
| 79 |
خِرقه فقر |
بر در
ميكـــــدهام دست فشان خواهى ديد |
| 80 |
بهار آرزو |
بــــر در ميكـــدهام پرسه زنان، خـــواهى ديد |
| 81 |
ديار قدس |
دست
از دلم بدار، كه جانم به لب رسيد |
| 82 |
روى يار |
اين
رهــــــــروان عشق، كجا مـــىروند زار؟ |
| 83 |
با كه گويم |
بــــا كــــــه گويم غم ديوانگى خود، جز يار؟ |
| 84 |
باده هوشيارى |
بــرگير جام و جــامه زهد و ريا درآر |
| 85 |
خُم مى |
دكّـــــه عطر فروشى است و يا معبر يار؟ |
| 86 |
ديار دلدار |
كــــور كورانه به ميخانه مرو، اى هشيار |
| 87 |
پرتو خورشيد |
مــــژده اى مــرغ چمن، فصل بهار آمد باز |
| 88 |
مستى عشق |
در
ميخـــــانه به روى همــــــــــــــه باز است هنوز |
| 89 |
سايه سرو |
ابـــــــرو و مژّه او تير و كمان است هنوز |
| 90 |
عروس صبح |
امشب
كه در كنار منى، خفته چون عروس |
| 91 |
فنون عشق |
جامى
بنوش و بر در ميخانه، شاد باش |
| 92 |
آواز سروش |
بر در
ميكــــــــده، پيمانه زدم خرقه به دوش |
| 93 |
پير مغان |
عهدى
كه بسته بودم با پير مى فروش |
| 94 |
آتش فراق |
بيــــدل كجـــا رود، به كه گويد نياز خويش؟ |
| 95 |
در هواى دوست |
من در
هواى دوست، گذشتم ز جان خويش |
| 96 |
محرم عشق
|
وه،
چه افراشته شد در دو جهان پرچم عشق |
| 97 |
جلوه ديدار |
پـــــــرده برگيـــر كه من يار توام |
| 98 |
محرم اسرار |
هيچ
دانــــى كه مــــــنِ زار گرفتار توام |
| 99 |
فصل طرب |
دست
افشــــان به سر كـــوى نگار آمدهام |
| 100 |
نهانخانه اسرار |
بــــــــر در ميكــــــده از روى نيــــاز آمدهام |
| 101 |
آيينه جان |
بــــــر در ميكــــــــــــده بگذشته ز جان، آمدهام |
| 102 |
گنج نهان |
بـــــــــــــــر در ميكــــده با آه و فغان آمدهام |
| 103 |
نيم غمزه |
پــــروانــــــــه وار بر در ميخانــه، پر زدم |
| 104 |
چشم بيمار |
من به
خال لبت اى دوست گرفتار شدم |
| 105 |
شهره شهر |
بـــه
كمنـــــــــد ســر زلف تو، گرفتار شـدم |
| 106 |
ياد دوست |
ي___اد روزى كه به عشق تو گرفتار شدم |
| 107 |
آرزوها |
در
دلـــــــم بــــــــود كه آدم شوم؛ امّا نشدم |
| 108 |
فراق يار |
از
تـــو اى مىزده، در ميكده نامـــى نشنيدم |
| 109 |
كعبه مقصود
|
هـــر
جا كه شدم، از تو ندايى نشنيدم |
| 110 |
نسيم عشق |
بـــه
مــــن نگـــر كه رخى همچو كهــــربا دارم |
| 111 |
محراب عشق |
جــــز خـــــــــم ابروى دلبر، هيچ محرابى ندارم |
| 112 |
سايه عشق |
بـــى
هــــــواى دوست، اى جان دلم، جــانى ندارم |
| 113 |
جامه دران |
مــن
خـــــواستــار جام مى از دست دلبرم |
| 114 |
بهار جان |
بهــــار آمد، جوانى را پس از پيرى ز سر گيرم |
| 115 |
محفل رندان |
آيـــد آن روز كــــه خــــاك سر كويش باشم
|
| 116 |
انتظار |
از
غــــم دوست، در اين ميكده فــــرياد كشم |
| 117 |
بوى نگار |
آن
نـــــالـــــــه ها كه از غم دلـــدار مىكشم |
| 118 |
شبِ وصل |
يــــك امشبــــى كه در آغوش مـــــاه تابانم |
| 119 |
سرا پرده عشق |
بـــــايد از رفتن او جــــامه به تن، پاره كنم |
| 120 |
شمع وجود |
آيــد
آن روز كه من، هجرت از اين خــانه كنم؟ |
| 121 |
خلوتگه عشاق |
فـــــرّخ آن روز كــــه از اين قفس آزاد شوم |
| 122 |
شرح پريشانى |
درد
خـــــــواهم، دوا نمىخــــــواهم |
| 123 |
همّت پير |
رازى
است مـــــرا، رازگشــــايى خواهم |
| 124 |
جام جان |
در
دلم بـــود كه جان در ره جانان بدهم |
| 125 |
صاحب درد |
مــــا زاده عشقيم و فــــــــــزاينده درديم |
| 126 |
كعبه دل |
تا از
ديــــــار هستى، در نيستى خزيديم |
| 127 |
سرّ عشق |
مـــــــا ز دلبستگى حيله گران، بىخبريم |
| 128 |
محرم راز |
در
غــــم هجر رخ مـــاه تو، در سوز و گدازيم |
| 129 |
جامِ ازل |
مــــــازاده عشقيم و پســــرخـــوانده جاميم |
| 130 |
بار يار |
اكنون
كه در ميكده بسته است به رويم |
| 131 |
وادى ايمن |
مــن
در اين باديــــــه صاحبنظرى مـــىجويم |
| 132 |
بت يكدانه |
خـــرّم آن روز كــه ما عاكف ميخانه شويم |
| 133 |
مىِ چاره ساز |
ســـاقى، به روى من درِ ميخانه بــاز كن |
| 134 |
راز گشايى |
بس
كــــن اين يــاوه سرايى، بس كن |
| 135 |
باده حضور |
در
لقــــــاى رُخش، اى پيـــر! مرا يارى كن |
| 136 |
ساحل وجود |
عـــــــاشق روى توام، دست بـــدار از دل من |
| 137 |
ساغر فنا |
تـــا
در جهــــــان بــــــود اثر، از جــــاى پاى تو |
| 138 |
كعبه در زنجير |
خـــــار راه منــــــــــى اى شيخ! ز گلــــزار برو |
| 139 |
باده عشق |
مــــن خراباتىام؛ از من، سخن يار مخواه |
| 140 |
شمس كامل |
صف
بيــــــاراييد رنــــــــدان، رهبر دل آمده |
| 141 |
عطر يار |
مـــــا نــــدانيم كه دلبستــــه اوييم، همه |
| 142 |
درياى هستى |
در غم
عشقت فتــــــادم، كاشكى درمان نبــــودى |
| 143 |
بار امانت |
غــمى
خواهم كه غمخوارم تـو باشى |
| 144 |
كاروان عشق |
پـــــريشانحالــــــى و درماندگىّ ما نمــىدانى |
| 145 |
گلزار جان |
با كه
گويم غم دل، جز تو كه غمخوار منى؟ |
| 146 |
محرم دل |
بـــــاز گـــــــويم غم دل را كــــه تــــو دلدار منى |
| 147 |
محراب انديشه |
بايد
از آفــــــــاق و انفس بگذرى تا جـــان شوى |
| 148 |
غمزه دوست |
جــــــــز سر كوى تــــــو اى دوست، نـــــــدارم جايى |
| 149 |
خلوت مستان |
در
حلقــــــه درويش، نــــــــديديـــــم صفـــــايى |